पाठ 2

प्रार्थना को समझना 

हर एक बच्चे को नए जीवन की जरूरत है , इसलिए उसे उद्धार की आश्वासन की जरूरत है। यह पाठ 1 था। जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे स्वास लेने की जरूरत होती है। प्रार्थना पर यह पाठ हमें यह सिखाएगा कि हम कैसे अपने नए आत्मिक जीवन पर स्वास ले सकते हैं। 

प्रार्थना परमेश्वर से बात करने जैसा है।जब आप प्रार्थना करते हैं , आपको खुले स्वभाव का और ईमानदार होना चाहिए। उसी प्रकार जैसा पवित्रशास्त्र हमें सिखाती है और प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया। 

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I. हमें प्रार्थना करने की आवश्यकता क्यों है ? 

A. यह परमेश्वर की आज्ञां है : 

“ आपको प्रार्थना करना ____________.” लूका 18:1 

“ और आत्मा में प्रार्थना करो , ________________________.” इफिसियों 6:18 

B. यह आपकी आवश्यकता है की आप परमेश्वर के मार्गदर्शन की खोज करें : 

“ अपने सारे ___________ उसपर डाल दो क्योंकि _________________________________.”  1 पतरस 5:7 

मुझ से _______ कर और मैं तेरी सुन कर तुझे __________________ बातें बताऊंगा जिन्हें तू अभी नहीं ________________________. यिर्मयाह 33:3 

C. आवश्यकता के समय अनुग्रह और दया प्राप्त करें। ( इब्रानियों 4:16) 

  • हमें परमेश्वर के अनुग्रह के सिंहासन तक कैसे पहुंचना चाहिए?

  • हम क्या पाएंगे और क्या हमें प्राप्त होगा?

D. आपको किन बातों के विषय में प्रार्थना करनी चाहिए ? 

“ किसी बात कि चिंता मत करो , बल्कि _______________ में धन्यवाद सहित प्रार्थना और विनय के साथ अपनी __________ परमेश्वर के सामने रखते जाओ। इसी से परमेश्वर की ओर से मिलने वाली शांति , जो समझ से परे है तुम्हारे हृदय और तुम्हारी बुद्धि को मसीह यीशु में सुरक्षित बनाये रखेगी। ” फिलिप्पियों . 4:6-7 

II. प्रार्थना के तीन उत्तर 

  • हाँ : हरी बत्ती तुम आगे बढ़ सकते हो

  • नहीं : लाल बत्ती तुम आगे नहीं बढ़ सकते हो

  • इंतज़ार : करो पीली बत्ती परमेश्वर प्रत्युत्तर नहीं दे रहें हैं, इसलिए इंतज़ार करें।

III. प्रार्थना का आशय :

  • स्तुति: परमेश्वर के स्वभाव की स्तुति करना (भजन 135:3)
  • धन्यवाद: परमेश्वर के अनुग्रह के लिए धन्यवाद दें (1 थिस्सलुनीकियों 5:19)
  • मांगना: परमेश्वर से कहें कि वह आपके ज़रूरतों को पूरा करें (फिलिपियों 4:6-7)
  • मध्यस्थी: परमेश्वर से कहें कि वह दूसरों के ज़रूरतों को पूरा करें (1 तीमुथियुस 2:1)
  • अंगीकार: परमेश्वर के प्रति अपने पाप को मान लें (1 युहन्ना 1:9)

IV. परमेश्वर के तीन परत वाली इच्छा 

  1. परमेश्वर ने हमें मानने के लिए क्या आज्ञाएं दी है। यह वो बात है जिसे परमेश्वर ने पहले से निश्चित किया है; यह एक व्यक्ति क्या और कैसे प्रार्थना करता है उसके द्वारा नहीं बदला जा सकता है (उदहारण अपने पडोसी से अपने सामान प्रेम रख)

  2. परमेश्वर जिसकी अनुमति देता है। कई बार हम जब परमेश्वर से निवेदन करते हैं, वह हमें कुछ हासिल करने की अनुमति देता है, लेकिन हम जो ग्रहण करते हैं उसके लिए हमें जिम्मेदार होना चाहिए (परमेश्वर का सर्वश्रेष्ठ नहीं)

  3. परमेश्वर को पसंद है? (रोमियों 12:2)

V. प्रार्थना के द्वारा नए स्वभाव का उत्सर्जन

  1. विश्वास रखें : " बस विश्वास के साथ माँगा जाए। थोड़ा सा भी संदेह नहीं होना चाहिए।" (याकूब 1:6)
  2. सही मनसा के साथ मांग करें : "तुम्हारे पास है नहीं, क्योंकि तुम परमेश्वर से मांगते नहीं हो जब तुम मांगते ही तो तुम्हे मिलता नहीं क्योंकि तुम बुरी मनसा से मांगते हो (याकूब 4:2-3)
  3. अपने पापों को अंगीकार करना : "यदि मैंने अपने मन में पाप रखा होता तो परमेश्वर मेरी नहीं सुनता" (भजन 66:18)
  4. उसकी इच्छा के मांगे : "हमारा परमेश्वर में यह विश्वास है कि यदि हम उसकी इच्छा के अनुसार उससे विनती करें तो वह हमारी सुनता है" (1 युहन्ना 5:14)
  5. विश्वासयोग्य ह्रदय के साथ मांगे : " वे निरन्तर प्रार्थना करते रहें और निराश न हों" (लुका 18:1)

VI. प्रभावशाली प्रार्थना के संकेत 

  1. प्रार्थना “यीशु के नाम में करें ” (युहन्ना 14:13) क्योंकि हम परमेश्वर के निकट सिर्फ यीशु के द्वारा ही आ सकते है।(युहन्ना 14:6).

  2. “आमीन” कहने के द्वारा हमारे प्रार्थना को समाप्त करना यह दर्शाता है कि सच्चे ह्रदय से प्रार्थना कहे गए शब्दों के साथ सहमति हो। (मती 6:13)

  3. प्रार्थना के कई भाग हैं: स्तुति, धन्यवाद, निवेदन, मध्यस्थी और अंगीकार।हमें किसी भी हिस्से पर ज्यादा ज़ोर दूसरे को नकारते हुए नहीं देना चाहिए।

  4. प्रार्थना स्वाभाविक और समझदारी से करें; दुहराव न करें।

  5. दिन के किसी भी समय किसी भी जगह प्रार्थना करें। प्रार्थना के समय और स्थान के लिए कोई सीमा नहीं है।

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